हिन्दू धर्म में महिलाओं के लिए कई सारे व्रत बताए गए हैं, लेकिन कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आने वाला करवा चौथ का बड़ा महत्व बताया गया है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा की पूजा के साथ ही यह व्रत पूर्ण करती हैं. इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, दिन रविवार को पड़ रहा है. मान्यता है कि, इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. आपको बता दें कि, करवा चौथ के व्रत में करवा का विशेष स्थान है. लेकिन करवे की संख्या कितनी होना चाहिए? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
पंडित जी के अनुसार, करवा चौथ के दिन पूजा संपन्न करते समय आपकी थाली में दो करवे होना जरूरी है. इनमें से एक करवा सुहागिन महिला का होता है और दूसरा करवा माता का होता है. हालांकि कई स्थानों में महिलाएं तीन करवे भी रखती हैं. थाली में रखे जाने वाले दोनों करवों में गेहूं भरा जाता है. लेकिन कई स्थानों पर महिलाएं एक में अनाज और दूसरे में गंगाजल रखती हैं. चूंकि, एक करवे में गेहूं भरा होता है. ऐसे में दूसरे करवे से ही माता को जल अर्पित किया जाता है और इसी करवे से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है.
जिन क्षेत्रों में तीन करवा रखने की परंपरा होती है, वे तीसरा करवा अपनी संतान के लिए रखती हैं. बाकी दो में से एक माता और दूसरा सुहागिन महिला का होता है. ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि करवों की संख्या कितनी हो यह अलग-अलग स्थानों पर परंपरानुसार अलग हो सकती है.